हाइकु

ज़िंदगी बीती
सपनों के जाल में
नींद न टूटी।

विस्तृत नभ
सिमटा टुकड़े में
मेरे आँगन।

घर है सीला
बाहर खिली धूप
विचित्र लीला।

हैं अजनबी
ख़ुद से हम सभी
जानें ख़ुद को।

स्वच्छंद मन
कहना कब माने
उड़ना जाने।

लो, फूँका घर
ले ली लुकाठी हाथ
चलेंगे साथ।

5 विचार “हाइकु&rdquo पर;

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